गुरुवार, ३० जून, २०१६

तन्हा लम्हे ...

 


मैंने पूछा हर उस
तन्हा लम्हेंको
क्यूँ तड़पा खुद
और तड़पाया मुझको   ....?

करवट बदल बदलकर
मैं जगी हर पलको
फिर तन्हा लम्हां
बोला मैं भी
तो जगता रहा
रोकके लम्बी साँसको   ....!!

कहीं साँस नं फूलें  तेरी
लंबी तन्हाईंसें 
हर पल सवारतां  रहां
हर धड़कन में उसका
नाम लेता रहाँ
फिर भी पूंछती हैं 
क्यूँ तड़पा खुद
और तड़पाया मुझको   ....?

वो खो गया गर्दिशमें
खाली हात तेरे
हिसाब मांगें तुझको 
वो मैं ही था
तन्हाइंमें  तेरे साथ था
हर तन्हां लम्हेंमें
उसका वजूद
तेरे खाली रुंह में
भरता था  ...!!
फिर भी पूंछती हैं 
क्यूँ तड़पा खुद
और तड़पाया मुझको   ....?

मैं फुट फुट के रोई
तन्हा लम्हे को
गले लगायी 
मन मुस्काया
ये सोचके
वो तो बड़ा हरजाई
तन्हा लम्हें की वफाई
जो उसे  हर पल
मेरे पास ले आयी  .....!


                                    "  समिधा " 


शुक्रवार, २९ एप्रिल, २०१६

"की " & "का" ( ती आणि तो )

त्याचा प्रवास  नेहमीच 
तिच्या शरीरापासून  सुरू होतो   ..... 
तिच्या मनाच्या आवर्तनांना 
लांघुन तो शरीरापार होतो   ....!!
अनं ती , त्याच्या शरीरातून 
येणा-या आवर्तनांत 
मनासह  स्वतःला स्वाह: करते …!!
तो  पोहचत असेल 
शरीरापार असलेल्या तिच्या 
आत्म्या पर्यंत    ....?
अनं ती , समर्पणाच्या  यज्ञात
स्वाह: समिधा  होऊन
पोहचत असेल  तिला
हव्या असलेल्या मोक्षापर्यंत  … ?


                                                 "समिधा" 

बुधवार, ६ एप्रिल, २०१६

मनूचा मनोरा .....



मनूचा मनोरा आता ढासळतोय  ...!
कारण  ....
शेजारणीला नव-याचा
मार खाताना
पाहून बायका आता
हसत नाहीत  …!
तिच्या जखमांवर उतारा
म्हणून आंबे हळद लावतात
आणि पाठीवर
आधाराचा हात ठेऊन
लढ म्हणतात  ….!!
ही तर  उत्क्रांती ….
नवा मनोरा उभारायची   ….!!!

                               " समिधा "