मैंने पूछा हर उस
तन्हा लम्हेंको
क्यूँ तड़पा खुद
और तड़पाया मुझको ....?
करवट बदल बदलकर
मैं जगी हर पलको
फिर तन्हा लम्हां
बोला मैं भी
तो जगता रहा
रोकके लम्बी साँसको ....!!
कहीं साँस नं फूलें तेरी
लंबी तन्हाईंसें
हर पल सवारतां रहां
हर धड़कन में उसका
नाम लेता रहाँ
फिर भी पूंछती हैं
क्यूँ तड़पा खुद
और तड़पाया मुझको ....?
वो खो गया गर्दिशमें
खाली हात तेरे
हिसाब मांगें तुझको
वो मैं ही था
तन्हाइंमें तेरे साथ था
हर तन्हां लम्हेंमें
उसका वजूद
तेरे खाली रुंह में
भरता था ...!!
फिर भी पूंछती हैं
क्यूँ तड़पा खुद
और तड़पाया मुझको ....?
मैं फुट फुट के रोई
तन्हा लम्हे को
गले लगायी
मन मुस्काया
ये सोचके
वो तो बड़ा हरजाई
तन्हा लम्हें की वफाई
जो उसे हर पल
मेरे पास ले आयी .....!
" समिधा "